Monday 29 February 2016

Political Conspiracy

सियासत 


Conspiracy
ज़िन्दगी में हर पल ,
 कुछ छोटी सी बातें थी , कुछ छोटी छोटी रातें भी थीं ;


उन बातो मे इक नई शुरूआत थी ,    
 वो हर रात  जो इक सुबह के साथ थी।      

Actually its my frustration that I effort to string in words and  pictures . Because I don't intend to be violent physically against system.
Freedom of speech


नींद नहीं आती है अब रातों में   ,
जाने कैसे वो चैन से सो जाते है  ,
वो सियासत के लुटे हुए सुल्तान  ,
मालूम नहीं वो किस शोर में खो जाते है । 

जूझ रही तृष्णाओं के बीच ये वतन भी हमारा है ,
सरहदो पे शहिद हुए वो वीर क्या गवारा है  ,

ना तेरी होगी  , ना मेरी होगी 
वतन कोई क्या कभी किसी के धौंस टूट पाया है  ,
ना जाने कितनें ख्वाइशें पलते हर रोज नई आँखों में  ,
मालूम नहीं किसके लिए फिर से नया सवेरा होगा ।

 क्या काल के चक्र से कोई भी निकल बच पाया है  ,
चले जा रहे एक टुकड़े को फतह करने वो लोग  ,
जिनके आँगन में खुद अँधेरा घना  छाया है । 

है गर आग सीने में ,
तो देखें तेरे कर्मो का सौर्य कितना है  ,
जिश जन-मत कि  खामोशी पे तुम इतना झूम रहे हो  ,
आंदाज नहीं तुम्हे उस खामोशी मे शोर  है । 

वो जहाँ जिसके लिए तुम मदहोश हो इतना  ,
गर वो मिल भी जाये तो क्या । 

ऐ सियासत के लुटे हुए सुल्तान  ,
तेरी कमी तो आज भी है  ,
शयद तुम्हे महसूस नहीं होती । 

वो बचपन जब तुम तिरंगे के सामने सजदा किया करते थे  ,
वो मिट्टी जिसकी गोद मे कभी तुम सोया करते थे  ,
वो आज भी वही है  बस बदले तो हम है   ,
'हम ' बनने की चाह मे बस हम _ हम नहीं रहे । 

अखंड अमर कहीं से तो घूरती होगी  ,
ना जाने हम नादान तुच्छ को देख क्या सोचती होगी  , 
कुकर्मो जो इतने लिप्त है  ,
नियति उनको देख न जाने क्या सोचती होगी । 

Power in one hand


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I admire your patience and wants .

Have a great time ahead!




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